मन में कुछ करने की लगन और हौसला हो तो, सफलता भी हमारे कदमों को चूम लेने पर मजबूर हो जाती है। इसी तरह से मुनव्वर शकील नामक व्यक्ति के बुलंद हौसले को आज पूरा पाकिस्तान सलाम कर रहा है। पाकिस्तान के फैसलाबाद के एक छोटे से कस्बे में रहने वाला यह इंसान सड़कों के किनारे अपना जीवनयापन करने के लिए लोगों के जूते सिलने का काम करता है। लेकिन लिखने के शौकिन इस मोची ने किसी भी प्रकार की स्कूली शिक्षा प्राप्त ना करते हुए भी पांच ऐसी किताबें लिख डाली, जो लोगों के लिए प्रेरणा बन चुकी है। इन पांच किताबों के लिए इन्हें पुरस्कार भी मिल चुके हैं।
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मोची का काम करने वाले मुनव्वर पाकिस्तान के रोडाला में रहते हैं। बचपन मे ही पिता का साया उनके ऊपर से उठ जाने के कारण इन्होंने कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा। पर पढ़ने-लिखनें के शौकिन मुनव्वर ने 13 साल की ही उम्र में अपनी पहली कविता लिख डाली और इस कविता के प्रकाशन के लिए वह रोज 10 रुपए जोड़ने लगें।
इस तरह एक-एक पैसा जोड़कर उन्होंने 2004 में अपनी पहली बुक प्रकाशित करवा ली। इसी तरह से मुनव्वर सुबह अखबार बांटकर पूरे दिन सड़क के किनारे जूतों को सिलकर किताबों को लिखने का काम करते थें। पंजाबी भाषा में लिखी गई उनकी लेखनी काफी दर्द और संघर्षों से भरी हुई होती है। जिसमें उन्होंने समाज से अलग जीवन जीने वाले तबकों के दर्द और संघर्ष को दर्शाया है। उनकी कविताएं “अक्खाँ मिट्टी हो गइयाँ, परदेस दि संगत, सोचसमंदर”, आदि हैं। जिसके लिए इन्हें कई तरह के पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।