मानव बलि की कई घटनाएं अब तक सामने आ चुकी हैं, पर क्या धार्मिक कार्य में बलि प्रथा आवश्यक है। इस बारे में हमने गहरी खोज की है और जो तथ्य सामने आएं हैं वे काफी हैरान कर देने वाले हैं। सबसे पहले हम आपको 2016 की एक घटना के बारे में जानकारी दे रहें हैं। इस घटना के अनुसार छत्तीसगढ़ के भगवानपुर तथा गोरखा के बीच के स्थान में एक व्यक्ति ने तंत्र साधना के दौरान अपने ही बेटे की बलि दे दी, जिसके बाद में अदालत द्वारा उसको आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। इस प्रकार की घटनाएं आज ही नहीं, बल्कि पहले भी कई बार घट चुकी है और ऐसी घटनाओं का बहुत बड़ा जिक्र पुरातन समय में भी मिलता है। जिससे यह पता लगता है कि प्राचीन समय में मानव बलि दी जाती थी, पर इस बारे में तंत्र ग्रंथ जो कुछ कहते हैं वह भी काफी चौंकाने वाला है। आपको हम जानकारी के लिए बता दें कि “बाणभट्ट” 7वीं सदी में पैदा हुए थे, उन्होंने देवी चंडी के किसी तंत्र पूजन के संबंध में मानव बलि की एक श्रेणी के बारे में जिक्र किया है। इसी प्रकार से हरिभद्र नामक एक अन्य विद्वान ने 9वीं सदी में उड़ीसा के एक काली मंदिर में तंत्र विधि और बलि के संबंध में जानकारी दी थी और यह बलि कर्म उस समय दक्षिण भारत में आमतौर पर विद्यमान था।
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आपको हम यह भी बता दें कि 8वीं-9वीं सदी के बीच में उत्तरी कर्नाटक में एक काली मंदिर का निर्माण हुआ था जो कि कुकनूर कस्बे में स्थित है, इस मंदिर को तंत्र पूजन का स्थान माना जाता है और पूर्वकाल से यहां मानवबलि का बड़ा इतिहास रहा है, पर इस मंदिर और इसकी बलि प्रथा के संबंध में जब हमने ग्रंथो में खोज की तो “कर्पूरादिस्तोत्रम” नामक एक स्त्रोत्र के 19 वें छंद में यह बताया गया है कि “बलिदान के लिए मानवजाति देवी द्वारा एक स्वीकृत प्रजाति है”, आपको हम यह भी बता दें कि 1922 में सर जॉन जॉर्ज वूडरौफ ने कौलाचार्य स्वामी विमलानंद द्वारा भाष्य किए गए “कर्पूरादिस्तोत्रम” की व्याख्या की थी जिसके अनुसार 19वें छंद में जिन पशुओं की सूची दी है, वे इंसान के 6 शत्रुओं के प्रतीक हैं ना कि वास्तविक पशु या मानव और इनमें से मानव का अहंकार भी एक है इसलिए मानव द्वारा देवी के समक्ष अपने इन अहंकार आदि की बलि देना ही वास्तव में मानव बलि देना होता है। इस प्रकार ये यह बात समझ में आती है कि किसी की बलि कर्म के नाम पर हत्या करना या कराने जैसा कोई कार्य धार्मिक नहीं माना जाता है और जो इस प्रकार का कार्य अपने अज्ञानवश करते भी हैं उनको इस कार्य से कोई फल नहीं मिलता है।