पेड़ इस धरती को दी गई प्रकृति की अनमोल धरोहर है, यदि पेड़ प्रकृति से खत्म हो जाए तो पृथ्वी पर जीवन का कोई चिन्ह नजर नहीं आएगा इसलिए सभी लोग कहीं न कहीं पेड़ों और प्रकृति के संतुलन के मुद्दे पर अपनी राय हमेशा सकारात्मक ही रखते हैं। यही बात मरुभूमि यानी रेगिस्तान के कल्पवृक्ष कहें जाने वाले खेजड़ी के पेड़ के बारे में भी वहां के लोगों के लिए बिल्कुल सही उतरती है और इसलिए आज हम आपको राजस्थान के इतिहास की उस घटना के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें इस खेजड़ी के पेड़ और अन्य जंगल न काटने देने पर 363 लोगों की सामूहिक हत्या कर दी गई थी। आइये जानते हैं इतिहास की उस घटना के बारे में।
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आखिर किस कारण हुई थी सामूहिक हत्या –
विश्वभर में फैला विश्नोई सम्प्रदाय भगवान जम्भेश्वर जी के बनाये 29 नियमों का पालन करता है जो की पूर्णतः वेदोक्त हैं और चूकिं भगवान जम्भेश्वर जी का जन्म राजस्थान में ही हुआ था और उन्होंने विश्नोई धर्म की नींव भी यहीं से रखी थी इसलिए पुरातन काल से ही यहां के विश्नोई लोगों पर उनकी गहरी छाप रही है। विश्नोई धर्म के 19 वें नियम में पेड़ों को बचाने की बात कहीं गई है और इतिहास की यह घटना बताती है कि विश्नोई समुदाय प्रकृति और पर्यावरण के लिए कितना उत्सर्ग कर सकता है।
यह था असल मामला –
यह घटना वर्ष 1787 की है, उस समय मारवाड़(जोधपुर) के महाराज अभय सिंह को अपने किले में फूलमहल बनवाना था इसलिए उनको लकड़ी की जरुरत पड़ी और उन्होंने लकड़ियों का इंतेजाम करने के लिए अपने मंत्री गिरधर दास को कह दिया। मंत्री गिरधर दास ने लकड़ियों के लिए जगह देखनी शुरू कर दी। इसी क्रम में उनकी नजर जोधपुर से महज 24 किमी दूर खेजड़ली गांव के खेजड़ी के पेड़ो पर पड़ी और गिरधर दास ने अपने लोगों को वहां के पेड़ काटने का आदेश जारी कर दिया। राजा के लोग अपने साजो-सामान के साथ में पेड़ काटने के लिए गांव में जा पहुचें और सबसे पहले उन्होंने रामू खोड़ नामक एक विश्नोई के घर के बाहर खड़ा खेजड़ी के पेड़ को काटना शुरू कर दिया। आवाज को सुनकर रामू की पत्नी अमृता देवी बाहर आ गई और उसने पेड़ को काटने का विरोध किया पर पेड़ का कटना न रुकता देख वह पेड़ से चिपक गई और राजा के लकड़हारों ने अमृता देवी को भी पेड़ के साथ में कुल्हाड़ी से काट डाला। इसके बाद में अमृता देवी की तीनों लड़कियों ने भी अपनी मां की तरह अपना बलिदान दे दिया।
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यह खबर जल्द ही गांव भर में फ़ैल गई और लोग वहां आते गए तथा पेड़ो से चिपक कर अपना बलिदान देते रहें। इस घटना में 71 महिलाओं व 292 पुरुषों सहित कुल 363 विश्नोई लोगों ने अपना बलिदान दिया पर खेजड़ी के जंगल को कटने नहीं दिया। यह बात जब महाराज अभयसिंह तक पहुचीं तो उन्होंने तुरंत पेड़ो की कटाई पर रोक लगा दी और विश्नोई समाज से माफ़ी मांगी और लिखित में यह वचन भी दिया किअब से मारवाड़ में कभी खेजड़ी का कोई पेड़ नहीं काटा जायेगा।
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इस घटना के दिन हर साल यहां पर मेला लगता है जिसमें बहुत दूर-दूर से पर्यावरण प्रेमी लोग आते हैं और पेड़ो को बचाने के लिए अपने जीवन का उत्सर्ग करने वाले 363 विश्नोई लोगों को नमन करते हैं साथ ही स्वयं भी पर्यावरण के सुधार में कार्य लिए सदैव तत्पर रहने की शपथ लेते हैं।
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उल्लेखनीय है की पेड़ो और हिरणों के बचाने के लिए विश्नोई समाज ने बहुत से बलिदान दिए हैं। राजस्थान सरकार में कई पुरूस्कार विश्नोई बलिदानी लोगों के नाम पर ही वर्तमान में दिए जाते हैं। इसके अलावा सरकार अमृत देवी अवार्ड से भी प्रतिवर्ष पर्यावरण से जुड़े लोगो को सम्मानित करती है। कुछ समय पहले JNU में भी “अमृता देवी सेमिनार हॉल” का उद्घाटन किया गया था।