यह है ताजमहल से जुड़ी शाहजहां और मुमताज की प्रेमकहानी का पूरा सच

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ताजमहल जो सभी पर्यटकों का सबसे बड़ा आकर्षण का केन्द्र माना जाता है। जिसकी सुंदरता बड़ी ही अलौकिक है जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते है। इसे मुमताज की याद का मकबरा कहा जाता है। जिसे शाहजहां के द्वारा उनकी याद में बनाया गया था। इस तरह से जुड़ी भ्रांतियां मिथ्य झूठ है। जिसमें सच की कहीं गुंजाईश ही नहीं बचती। वैसे भी पहले से ही कई इतिहासकार शाहजहां और मुमताज की प्रेम कहानी को शुरू से नकारते आए हैं। यदि आप इनकी प्रेम कहानी के सच के बारे में जानेंगे तो आपके भी होश उड़ जाएंगे। जाने इस प्रेम कहानी के बारे में…

आइये जानते है शाहजहां और मुमताज के प्यार का सच क्या है
पांचवें मुगल शासक रहे शाहजहां का नाम एक ऐसे आशिक के रूप में लिया जाता रहा है जिसने अपनी बेगम मुमताज के लिए विश्व की सबसे ख़ूबसूरत इमारत बना अपने प्यार की ईबारत लिख डाली। पर यह ईबारत इतनी खोखली थी कि मुमताज के इंतकाल के कुछ ही दिनों के बाद शाहजहां ने उनकी ही बहन फरजाना से विवाह कर लिया।

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मुमताज जिनका असली नाम “अर्जुमंद-बानो-बेगम” था। यह शाहजहां की पहली पत्नी नहीं बल्कि चौथें नंबर की पत्नि के रूप में मानी जाती है। इसके बाद राजा ने 3 और लड़कियों से विवाह रचाया था। शाहजहां की इन 6 पत्नियों के अलावा उनके हरम में कई हजार रखैलें भी थी। मुमताज के साथ शादी की बात करें, तो शाहजहां ने अपने सूबेदार शेर अफगान खान जो मुमताज के पहले पति थे, उनकी हत्या कर मुमताज का हरण कर अपना विवाह रचाया था। जबकि मुमताज का शेर अफगान खान से एक बेटा भी था।

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मुमताज की खूबसूरती की बात करें, तो वो ज्यादा सुंदर नहीं थी शाहजहां की सभी बीवियों में सबसे खूबसूरत उनकी पहली पत्नी इशरत बानो थी। मुमताज की मौत अपने 14 वें बच्चे को पैदा करने के दौरान हुई थी। जिसका गम शाहजहां को कतई नहीं था, यदि गम होता, तो वो तुंरत ही उनकी बहन के साथ विवाह नहीं करते। शाहजहां को वासना की भूख ज्यादा थी जिसके चलते उसने सभी लाज-लज्जा को छोड़ खुद की बेटी जहांआरा के साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बना लिया था। जहांआरा, शाहजहां और मुमताज की सबसे बड़ी बेटी थी जिसकी शक्ल हू-ब-हू मुमताज से मिलती जुलती थी। इसलिए उसने जहांआरा को अपनी बेटी की जगह रखैल बना लिया था। उसके विवाह पर भी कई अड़चने डाल कर वह हमेशा ही रोड़ा बना रहता था। शाहजहां ने अपने इस गलत संबंध को सही बनाने के लिए मौलवियों और ईमाम की एक सभा बुलाकर अपने गंदे रिश्ते को सही करार करवा लिया था। शाहजहां की इस घटिया करतूतों का बेमन से मौलवियों ने समर्थन कर दिया। जहांआरा इस संबंध से खुश नहीं थी उसके संबंध तो किसी और के साथ थे जिसका पता चलते ही शाहजहां नें उसके प्रेमी के पकड़कर तंदूर में बंद कर जिन्दा जला दिया था। इस सच्चाई को जानकर क्या आप कह सकते है कि शाहजहां का अपने पत्नि के प्रति प्यार सच्चा था।

अगर शाहजहां में अपने पत्नि के प्रति थोड़ा भी प्यार होता तो मुमताज के साथ शादी करने के बाद वो इतनी रखैलें ना रखता, और ना ही उनकी मौत के बाद उसकी बहन से शादी करता और ना ही पिता -बेटी के पवित्र रिश्ते को कलंकित करता। शाहजहां को प्यार नहीं हैवानियत की हवस थी। उसने अपने अहंकार और शरीर में जलती हवस की ज्वाला को शांत करने के लिए मुमताज से विवाह किया था, ना कि उसका सुंदरता से। जिसने कभी औरतों की इज्जत ना कि हो वो प्यार की ईबादत को क्या समझेगा। इसलिए ताजमहल को मुमताज की याद का मकबरा कहना गलत होगा।

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