परिवार के तिरस्कार के बाद भी इस बूढ़ी महिला ने नहीं हारी हिम्मत

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मां-बेटे के रिश्ते को लेकर हमेशा यह कहा जाता है कि पूत कपूत हो जाते हैं, पर मां कभी कुमाता नहीं बनती। यह बात पूरी तरह से सही भी है क्योंकि हर मां अपने बच्चों को सारे सुख देकर अपने आंचल में दुखों का पहाड़ रख लेती है, पर जब मां के बूढ़े होने पर उसे सुख देने की बारी बच्चों की आती है तो यही मां उन्हें सबसे भारी लगने लगती है। जिसकी दो रोटी का बोझ भी उठाने को तैयार नहीं होते उनके बच्चे। ऐसा ही कुछ वाकया हुआ इलाहाबाद में रहने वाली वीणापाणी के साथ, जो इस समय उम्र के ऐसे पड़ाव पर खड़ी हैं जब उन्हें आराम करना चाहिये पर वो अपना बोझ खुद उठाने के लिये जी जान एक कर कड़ी मेहनत कर रही हैं।

इनकी इस हालत को देखकर हर किसी के मन में एक ही सवाल उठता है कि बच्चों के लिये मां-बाप बोझ क्यों बनने लगते हैं। क्यों ये बच्चे अपने मां-बाप को संभालने से कतराते हैं। जब एक मां-बाप अकेले कई-कई बच्चों को पालने का सामर्थ्य रख सकते हैं तो ये बच्चे अपने मां-बाप को क्यों नहीं संभाल सकते। कुछ इसी तरह का दर्द लिये इलाहाबाद की वीणापाणी अपना जीवन यापन कर रही हैं, जिनके बच्चों ने अपने घर के दरवाजे उनके लिये हमेशा के लिये बंद कर दिये हैं। इस मां की कहानी सुनकर हर किसी की आंखें छलकने को मजबूर हो जायेंगी। 63 साल की वीणापाणी को भले ही उनके पति और बच्चों ने घर से बेघर कर दिया हो पर उन्होंने इस उम्र में भी हार नहीं मानी और ना ही किसी के सामने हाथ फैलाया। अपनी क्षमता के अनुसार मेहनत कर आज वो दो वक्त की रोटी चैन से खा रही हैं।

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नौकरी छूटी तो बेटों ने तोड़ा नाता-

जानकारी के अनुसार वीणापाणी स्वाभिमानी होने के कारण शुरू से ही आत्मनिर्भर रही हैं। वो एक निजी कंपनी के साथ ही जनसंख्या विभाग से जुड़कर भी काम करती रहीं। इसी तरह अपनी पूरी जिंदगी अपने परिवार को खुश रखने के लिये काम करते हुए निकाल दी और जब उनके आराम का समय आया तो सौतेले बेटों ने उनसे नाता रखना छोड़ दिया और उन्हें घर से निकाल दिया। पति पहले ही उन्हें छोड़ चुके हैं।

कर्ज लेकर खरीदा ई-रिक्शा-

वीणापाणी पर उनकी एक बहन की भी जिम्मेदारी थी। इस हालत में उन्होंने रिटायरमेंट से मिले पैसों के साथ कुछ कर्ज लेकर 1 लाख 45 हजार में ई-रिक्शा खरीदकर अपनी रोजी रोटी का साधन जुटाया। इसके लिये उन्होंने पहले रिक्शा चलाने के लिए ड्राइवर रखे, लेकिन ड्राइवर के अक्सर काम छोड़ कर भागने से उन्होंने खुद ही रिक्शा चलाने का फैसला किया और निकल पड़ीं अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाने के लिये सड़कों पर। फिर क्या तेज धूप या क्या तेज गर्मी, पेट की सुलगती आग और बच्चों की झूठी मोहब्बत ने उन्हें एहसास करा दिया कि आज के समय में पैसों से ही रिश्ते बनते हैं। आज वो अपने जीवन से खुद संघर्ष करते हुये अपना और अपनी बहन का पोषण कर रही हैं और अपने आगे आने वाले हर संघर्षों का हंस कर जवाब देने को तैयार हैं।

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