ईद-उल-जुहा:-जानें इस त्यौहार का असल इतिहास और पैगाम

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ईद के बारे में आप जानते ही होंगे पर अधिकतर लोग सिर्फ यही जानते हैं कि ईद दो प्रकार की होती एक मीठी ईद यानि ईद उल-फ़ित्र और ईद-उल-जुहा यानि बकरा ईद पर बहुत कम लोग ईद-उल-जुहा के बारे में जानते हैं इसलिए आज हम आपको इस ईद के बारे में बता रहें हैं। आइये सबसे पहले जानते हैं ईद-उल-जुहा के मानवीय पैगाम के बारे में।

हजरत इब्राहीम का पैगाम –

यदि इस्लामी शरियतों का अध्ययन किया जाए तो आपको ईद-उल-जुहा के त्यौहार के पीछे एक पैगाम नजर आता है और यह एक ऐसा पैगाम है जिसको पैगम्बर हजरत इब्राहीम ने ईसा से करीब 1800 वर्ष पहले दुनिया के नाम किया था। यह पैगाम था कुर्बानी का, यह पैगाम था त्याग का और यह पैगाम था खुदा से सच्ची मुहब्बत का। हजरत इब्राहिम ने उस समय दुनिया के लोगों को यह बताया था कि यदि आप खुदाबंद से सच्ची मुहब्बत करते हो तो उसमें कभी किसी दुनियावी चीज या रिश्ते को शरीख न करों अन्यथा आपकी मुहब्बत की सच्चाई कायम न रह सकेगी।

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कौन हैं हजरत इब्राहीम –

हजरत इब्राहीम का जन्म ईसा से लगभग 1800 साल पहले इराक के बेबीलॉन में हुआ था। हजरत इब्राहीम एक ऐसे व्यक्ति हैं जो की ईसाई और यहूदी धर्म के साथ साथ इस्लाम धर्म के पैग़म्बर के रूप में खड़े हैं। हज़रत इब्राहीम को इस्लाम धर्म में “नबी” माना जाता है वहीं ईसाई और यहूदी धर्म की किताबों में भी इब्राहीम को इसी पद पर कायम किया है।

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इसलिए मनाई जाती है ईद-उल-जुहा –

बहुत कम लोग ही इस बात को जानते हैं की ईद-उल-जुहा आखिर क्यों मनाई जाती है इसलिए आज हम आपको ईद-उल-जुहा के इतिहास के बारे में बता रहें हैं ताकि आप इसके असल स्वरूप को समझ सकें और इसके बास्तविक पैगाम को जान सकें। ईद-उल-जुहा एक ऐसा त्यौहार है जिसमें लोग अल्लाह की राह में अपना सब कुछ कुर्बान करने के जज्बे को कायम करते हैं लेकिन बहुत कम लोग ही यह जानते हैं की कुर्बानी की यह रस्म पैग़म्बर हज़रत इब्राहीम के समय से ही चली थी आइये जानते हैं ईद-उल-जुहा के असल इतिहास।

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इस्लामी धार्मिक ग्रंथों के हिसाब से एक बार जब हजरत इब्राहीम गहरी नींद में थे तो उन्होंने सपने में अल्लाह ने हुक्म दिया की अपनी सबसे प्यारी चीज हमारे नाम कुर्बान कर दें। जब हज़रत इब्राहीम की नींद खुली तो वे बेचैन हो उठें और उन्होंने सोचा की उनकी सबसे प्यारी चीज क्या हो सकती है। इस बारे में उन्होंने अपनी बेगम सैयदा हाजरा से भी बात की और अंततः हजरत इब्राहिम को लगा की इस दुनियां में उनकी सबसे प्यारी चीज उनका लड़का “इस्माईल” है। इस्माईल तब काफी छोटे बच्चे थे पर जब हजरत इब्राहीम ने उनको यह कुर्बानी की बात बताई तो वह इसके लिए तैयार हो गए। हजरत इब्राहीम अपने बेटे इस्माईल को लेकर बहुत दूर निकल गए और एक निर्जन स्थान पर पहुचें। हज़रत इब्राहीम ने उस स्थान पर इस्माईल की आंखों पर तथा अपनी आंखों पर पट्टी बांधी और इस्माईल की गर्दन पर छुरा चला दिया। छुरा चलाते ही खून का फब्बारा छूट पड़ा। हज़रत इब्राहीम ने अपनी पट्टी को आंखों से हटाया तो पाया की वहां पर इस्माईल की जगह एक दुम्बा (अरब देश का एक जंतु) था और इस्माईल की जगह पर उसकी कुर्बानी हो गई। उस समय अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम के इस समर्पण से खुश हो कर कुर्बानी को बाजिब करार दे दिया था और तब से आज तक यह कुर्बानी की परंपरा चलती आ रही है।

इस सारे इतिहास को हम यदि गौर करें तो हम पाएंगे की हज़रत इब्राहिम अल्लाह के प्रति बहुत ज्यादा समर्पित थे और इसी कारण से अल्लाह ने उनकी यह परीक्षा ली थी। हजरत इब्राहीम का यह इतिहास हमें न सिर्फ यह बताता है की अल्लाह के प्रति आपका समर्पण कैसा होना चाहिए बल्कि यह भी बताता है की यदि आपकी दीनी और दुनियावी मुहब्बत में कितना फासला होना चाहिए और आपको किसको प्राथमिकता देनी चाहिए।

 

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