श्रद्धा व उल्लास के साथ मनाया जा रहा कार्तिक पूर्णिमा और गुरुनानक जयंती पर्व

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कार्तिक पूर्णिमा और गुरुनानक जयंती का पर्व पूरे देश में श्रद्धा व उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। इस विशेष मौके पर देश भर के गुरुद्वारों, मंदिरों में की गई भव्य सजावट की शोभा देखती ही बन रही है। इन दोनों पर्वों का अपना-अपना महत्व और मान्यताएं हैं, जिसे हर कोई अपनी तरह से मानता है। आइए जानते हैं इन पर्वों से जुड़ी कुछ विशेष बातों को..

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कार्तिक पूर्णिमा
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन महादेवजी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था। इसलिए इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन चंद्रोदय पर शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन 6 कृतिकाओं का पूजन किया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि में व्रत करके बैल दान करने से शिव पद प्राप्त होता है। दूसरी मान्यता यह भी है कि इस दिन गाय, हाथी, घोड़ा, रथ, घी आदि का दान करने से सम्पत्ति बढ़ती है। इस दिन उपवास करके भगवान का स्मरण, चिन्तन करने से अग्रिष्टोम यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है तथा सूर्यलोक की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भेड़ का दान करने से ग्रहयोग के कष्टों का नाश होता है। इस दिन कार्तिक के व्रत धारण करने वालों को ब्राह्मण भोजन, हवन तथा दीपक जलाने का भी विधान है। इस दिन यमुना जी पर कार्तिक स्नान की समाप्ति करके राधा-कृष्ण का पूजन, दीपदान, शय्यादि का दान तथा ब्राह्मण भोजन कराया जाता है। कार्तिक की पूर्णिमा वर्ष की पवित्र पूर्णमासियों में से एक है।

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गुरुनानक जयंती
गुरुनानक जी के जन्मदिवस को गुरु नानक जयंती के रूप में मनाया जाता है। गुरु नानक जी सिखों के प्रथम गुरु थे। उनका जन्म पंजाब के तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था। माना जाता है कि 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ था। उनके श्रीचंद और लक्ष्मीचंद नाम के दो पुत्र भी थे। 1507 में वे अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर यात्रा के लिए निकल पड़े। जिसके बाद उन्होंने 1521 तक भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के प्रमुख स्थानों का भ्रमण किया। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने चारों दिशाओं में भ्रमण किया था। लगभग पूरे विश्व में भ्रमण के दौरान नानकदेव के साथ अनेक रोचक घटनाएं घटित हुईं। ऐसा बताया जाता है कि गुरु नानक देव ने 1539 में देह त्याग दिया था। कहते हैं कि नानक देव जी से ही हिंदुस्तान को पहली बार हिंदुस्तान नाम मिला। लगभग 1526 में जब बाबर द्वारा देश पर हमला करने के बाद गुरु नानक देव जी ने कुछ शब्द कहे थे तो उन शब्दों में पहली बार हिंदुस्तान शब्द का उच्चारण हुआ था। आज के इस पावन अवसर पर पंजाब में अमृतसर, आनंदपुर साहिब, तलवंडी साबो सहित अन्य स्थानों पर गुरुद्वारों में लोगों की भारी भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं।

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