रहस्य से भरी इस नदी में सैकड़ों साल से बह रहा है सोना

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हमारे देश को सोने की चिड़िया के नाम से जाना जाता रहा है क्योंकि इस देश में सोने की नदियां बहती थी, जिसका मतलब यह था कि देश में इतना सोना था कि लोग इस प्रकार की संज्ञा का नाम दे भारत की पहचान कराते थे। वहीं आज के समय में सोने की कीमत जहां आसमान छू रही है, वहीं भारत से ऐसे ही प्रांत में सोना कौड़ियों के दाम खरीदा व बेचा जा रहा है क्योंकि यहां की एक नदी आज भी सोना उगल रही है। नदी में सोना आज भी बहता हुआ देखा जा सकता है।

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जी हां, ये बात बिल्कुल सच है। झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 15 किमी की दूरी पर स्थित आदिवासी इलाके के रत्नगर्भा में बहती है सोना उगलने वाली नदी, जिसे स्वर्णरेखा नदी के नाम से जाना जाता है। इस नदी में सोने का भंडार इतना भरा है जिसका अंदाजा स्वयं विज्ञान भी लगाने में असमर्थ रहा है।

सोने के कण कहां से आते हैं-
स्वर्ण रेखा के साथ मिलने वाली सहायक नदी ‘करकरी’ के बालू में सोने के कण की मात्रा काफी पायी जाती है। यही नदी जब स्वर्ण रेखा नदी से जाकर मिलती है तो करकरी नदी के कण स्वर्ण रेखा में जाकर बह जाते हैं। करकरी नदी की लंबाई केवल 37 किमी है। जिसका रहस्य आज तक सुलझ नहीं पाया कि इन दोनों नदियों में सोने के कण आखिर आते कहां से हैं।

भूवैज्ञानिकों के द्वारा किये शोधों से पता चला है कि यह नदी कई बड़ी चट्टानों से होकर गुजरती है। इसी दौरान होने वाले घर्षण की वजह से सोने के कण इसमें घुल जाते हैं। यह नदी कई परिवार का भरण पोषण कर आगे बढ़ रही है। झारखंड में रहने वाले स्थानीय आदिवासी इस नदी के पानी में बहने वाले बालू को छानकर सोने के छोटे छोटे कणों को एकत्रित करने का काम करते हैं। इस काम को करने के लिये कई सालों से इनके परिवारों की पीढ़ियां लगी हुई हैं।

क्‍वारी सोना सबसे शुद्ध-

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नदियों से निकाली जाने वाली बालू को लकड़ी के बर्तन में रखकर धोया जाता है, जिससे बालू पानी से छन कर बह जाती है और उसके अंदर के बारीक कण उसमें बचे रह जाते हैं। इन कणों को इकट्ठा करने के बाद उसे पिघलाया जाता है। कण को अच्छी तरह से पिघला कर इसे सोने का रूप दिया जाता है। जिसे क्वारी सोना के नाम से जाना जाता है, जो काफी शुद्ध होता है।

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