जानिए उन वैदिक गुरू के बारे में जो इस कलियुग में भी हैं मानवजाति के लिए महत्वपूर्ण

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प्राचीन काल के युगों में अनेक वैदिक गुरू हुए हैं जिन्होंने इस देश और इसकी संस्कृति को आगे बढ़ाया, पर आज हम उनमें से कुछ ऐसे गुरुओं के बारे में बता रहें हैं जिनका सिक्का आज भी चलता है। जी हां, हम आपको भारत वर्ष में हुए कुछ ऐसे लोगों से मिलवा रहें हैं जो अति प्राचीन काल के होते हुए, आज भी मानव जाति के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। आइए जानते हैं इन महापुरुषों के बारे में।

1 – देव गुरू बृहस्पति –

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देव गुरू बृहस्पति के बारे में आपने बहुत सी पौराणिक कथाओं में पढ़ा ही होगा। आपको बता दें कि महाभारत के आदिपर्व में बताया गया है कि देव गुरू बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र थे। देव गुरू बृहस्पति त्रिदेवों में से ही एक माने जाते हैं और वे देवताओं को नीतियों तथा कर्मों के प्रकाश मार्ग की ओर बढ़ाने का कार्य करते हैं। इसके अलावा वे देवताओं की रक्षा का कार्य भी करते हैं तथा उनको युद्ध में प्रशिक्षित करने का कार्य भी करते हैं।

2 – दैत्य गुरू शुक्राचार्य –

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दैत्य गुरू शुक्राचार्य को दैत्यों यानी असुरों का गुरू कहा जाता है। जिस प्रकार से देवताओं को देव गुरू बृहस्पति से ज्ञान प्राप्त होता है, उसी प्रकार से दैत्यों को गुरू शुक्राचार्य से ज्ञान मिलता है। पौराणिक कथाओं में आता है कि शुक्राचार्य हिरण्‍यकशिपु की पुत्री दिव्या के पुत्र थे। भगवान शिव के ये अनन्य भक्त थे और उन्हीं से शुक्राचार्य ने मृत संजीवनी विद्या का ज्ञान प्राप्त किया था। कई बार इन्होंने दैत्यगुरू होने के बाद भी देवताओं को ज्ञान दिया क्योंकि वे एक गुरु थे और विद्या दान उनका धर्म था।

3 – परशुराम –

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परशुराम का नाम उन प्राचीन गुरूओं में लिया जाता है जो शास्त्र तथा शस्त्र दोनों के ज्ञान को जनमानस में बांटते थे। परशुराम एक महायोद्धा थे यह बात सभी लोग जानते ही हैं, पर वे एक महान वैदिक गुरु भी थे। वे धर्म शास्त्रों के ज्ञाता तथा उनके मर्म को जानने वाले थे। परशुराम के पिता ऋषि जमदग्‍नि तथा मां रेणुका थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि परशुराम के शिष्यों में भीम, कर्ण, द्रोणाचार्य जैसे महाभारत कालीन योद्धाओं का नाम शामिल है।

4 – गुरू सांदीपनि –

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जिस प्रकार से भगवान श्रीराम के गुरू ऋषि विश्वामित्र थे, उसी प्रकार से भगवान श्री कृष्ण के गुरू ऋषि सांदीपनि थे। आपको हम बता दें कि ऋषि सांदीपनि से ही श्री कृष्ण ने 64 कलाओं की शिक्षा पाई थी। आज भी ऋषि सांदीपनि का आश्रम मध्य प्रदेश के उज्जैन में है।

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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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