अमरनाथ यात्रियों पर 15 वर्ष बाद चरमपंथियों ने आक्रमण कर फिर से इस यात्रा की सुरक्षा को लेकर नए सवाल खड़े कर दिए हैं। अमरनाथ की यात्रा आखिर क्यों करते हैं लोग, क्या है इसका महात्मय और अमरनाथ यात्रियों के लिए कैसी सुरक्षा व्यवस्था होती है, ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब आपको मिलेंगे हमारे इस आलेख में..
1 – सुरक्षा व्यवस्था –
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जहां तक इस वर्ष की अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा की बात करें, तो कश्मीर में तनाव को देखते हुए इस बार यात्रा में काफी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है। यात्रा के शुरू होने से पहले सुरक्षा बलों ने मीडिया को इस बारे में बताया भी था। सुरक्षा बलों की मानें तो 300 किमी के रास्ते पर आर्मी, राज्य पुलिस तथा पैरा मिलिट्री फोर्स के करीब 14 हजार जवानों को तैनात किया गया है। इसके अलावा सीआरपीएफ और बीएसएफ की 100 टुकड़ियों को भी तैनात किया गया है। इस यात्रा की सुरक्षा के लिए कुछ अलग बटालियनों को कवरअप के लिए भी रखा गया है। आपको बता दें कि इस बार की सुरक्षा व्यवस्था पिछले वर्ष की अपेक्षा दोगुनी है।
2 – यात्रा का महात्मय –
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असल में यह यात्रा हिंदू धर्म के एक पवित्र स्थान “अमरनाथ गुफा” की यात्रा है। यह गुफा दक्षिण कश्मीर से लगभग 46 किमी की दूरी पर पड़ती है। इस गुफा तक यात्री सिर्फ पैदल या खच्चर से ही जा सकते हैं। आपक बता दें कि यह यात्रा करीब 5 दिन में पूरी होती है। इस गुफा को लेकर शिव महापुराण में एक कथा भी आती है, जिसके अनुसार भगवान शिव ने देवी पार्वती को इस गुफा में ही “अमर कथा” सुना कर अमरता का रहस्य बताया था। वैसे तो अमरनाथ की यह गुफा बर्फ से ढकी रहती है, पर श्रावण मास में गुफा के बाहर तथा अंदर की बर्फ कम हो जाती है इसलिए श्रावण से अमरनाथ यात्रा की शुरूआत 45 दिन के लिए होती है। आपको हम यह भी बता दें कि अमरनाथ की इस गुफा का जिक्र 12 वीं सदी के कश्मीरी इतिहासकार “कल्हड़” ने अपने महाकाव्य राजतरंगिणी में भी किया है।
3 – अमरनाथ यात्रा और आतंकी हमलें –
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10-7-17 सोमवार के दिन हुए चरमपंथी हमलें को लेकर इस यात्रा पर काफी सवाल उठ खड़े हुए हैं, पर हम आपको बता दें कि इससे पहले 2 अगस्त 2000 को पहलगांव के बेस कैम्प पर भी चरमपंथियों ने हमला किया था। इस हमले में 32 लोग मारे गए थे, जिनमें से 21 अमरनाथ यात्री ही थे। 20 जुलाई, 2001 में भी अमरनाथ यात्रा के यात्रियों पर हमला हुआ था जिसमें 13 लोग मारे गए थे। यह हमला अनंतनाग नामक स्थान पर हुआ था। 6 अगस्त, 2002 में भी अमरनाथ यात्रियों के ऊपर हमला हुआ था, जिसमें 9 लोगों की मौत हो गई थी और 13 घायल हो गए थे।
अब सवाल उन लोगों पर भी उठते हैं जो अमन, भाईचारे जैसे शब्दों के ज्यादा इस्तेमाल लिए जाने जाते हैं कि भाईचारे के बीच 40 हजार जवानों को लगाने की आखिर क्या जरूरत पड़ गई या शांति और अमन का पैगाम देने वाले, आखिर बेगुनाह लोगों को कत्ल कर कौन से भाईचारे को निभा रहें हैं। भाईचारा वाकई में सही शब्द है भी या सिर्फ भ्रमजाल ….. इस पर आप ही विचार करें।