मशहूर शायर राहत इंदौरी का दिल का दौरा पड़ने से हुआ निधन

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कल शाम दिल का दौरा पड़ने से मशहूर शायर राहत इंदौरी का निधन हो गया | ज़िन्दगी के ७० बरस गुज़ार चुकने के बाद कल इंदौर के एक अस्पताल में शाम ५ बजे उन्होंने आखिरी साँस ली | डॉक्टरों के मुताबिक़ कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद उनका इलाज चल रहा था और पहले दिन में एक बार उनको दिल का दौरा पड़ा जिससे उन्हें बचा लिया गया | पर फिर शाम को एक और दिल का दौरा पड़ा और डॉक्टर उन्हें बचा न सके | मंगलवार रात को ही उन्हें सुपुर्द-ए-ख़ाक कर दिया गया |

राहत साहब अपनी बेबाकी और तीखी शायरी और ग़ज़लों के लिए जाने जाते थे और आने वाले जाने कितने बरसों तक इसी तरह उन्हें याद किया जाता रहेगा | बड़े कम लोग होते हैं जिन्हें ऐसी नेमत मिलती है और जिनको मिलती है उसी से वह ऊपर वाले की इबादत करते हैं |

राहत साहब की धर्मपत्नी ने बताया कि उनको शेर-ओ-शायरी के अलावा खाने-पकाने का भी शौक़ था | जब भी मौका लगता वो किचन में पंहुच जाया करते और ज़ायक़ेदार खाने से घर-परिवार को बेहद लुत्फ़ आता |

rahat indori

उन्होंने अपने कलामों में वो चाहे सियासत की पेचीदगी हो, ज़िन्दगी की कश्मकश, मोहब्बत के बेहिसाब रंग या फिर मुल्क के लिए रगों में दौड़ते लहू की गर्मी हो , सब कुछ बड़े संजीदगी और बेबाकी से ज़ाहिर किया है जो युवाओं में ख़ास कर काफी लोकप्रय हैं |

आज उनके जाने कितने ही शेर हैं जो फिर से पढ़ने को जी चाह रहा है जो इस प्रकार है :

मैं जब मर जाऊँ मेरी अलग पहचान लिख देना
लहू से मेरी पेशानी पर हिंदुस्तान लिख देना

या अभी हाल फिलहाल में सोशल मीडिया पर वायरल हुआ उनका एक मशहूर शेर, बुलाती है मगर जाने का नहीं, युवाओं के सर चढ़ के बोल रहा था | इस एक शेर पर जाने कितने मीम लोगों ने सोशल मीडिया पर शेयर किये |

एक ऐसी ग़ज़ल जिसने जाने कितनों के खून में उबाल पैदा किया, वो कुछ इस प्रकार है :

आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो

ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

सेकुलरिज्म और देशभक्ति को तुच्छ राजनीति से मैला करते जाने कितने लोगों पर गहरा तंज़ उनके ये शेर किसके ज़हन में नहीं होंगे :

अगर खिलाफ हैं, होने दो, जान थोड़ी है
ये सब धुँआ है, कोई आसमान थोड़ी है

जो आज साहिब-इ-मसनद है कल नहीं होंगे
किराएदार है जाती मकान थोड़ी है

सभी का खून है शामिल यहाँ की मिटटी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है

और प्यार मोहब्बत में पड़े जाने कितने जोड़ों को गुलज़ार या टूटे दिल में सजाने को ये शेर भला कौन भूल सकता है :

जो कुछ हो इशारों में बता भी देना
हाथ जब उससे मिलाना तो दबा भी देना

और आखिरी में उनको श्रद्धांजलि देते हुए उन्हीं का एक शेर है :

हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते

जान होती तो मिरी जान लुटाते जाते

सच है शायर कभी मरते नहीं हैं वो अपनी अज़ीम नेमतों को लिए हुए जाने कितने दिलों में चरागों के मानिंद रोशन रहते हैं | परमेश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दें |

कोरोना का अभिशाप और जाने कितने बेशकीमती हीरों को इस साल २०२० ने हमसे छीना है | अब ईश्वर से यही प्रार्थना है कि अब और नहीं, कृपा दृष्टि बनाएं और महामारी से लड़ते संसार को शक्ति दें और इस महा आपदा से शीघ्र निकालें |

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