इंसानों की खोपड़ी को यादगार के तौर पर रखा जाता है यहां

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हम सब एक पुराने आदम युग से धीरे-धीरे विकास कर यहां पहुंचे हैं। इस सारे क्रम में बहुत से बदलाव हुए हैं। सिर्फ हमारे वातावरण में ही नहीं बल्कि हमारी आदतों और मान्यताओं में भी। यदि विश्व के मानचित्र पर गौर किया जाये तो एक ऐसा क्षेत्र देखने को मिलता है जो आज भी बहुत सी अजीबोगरीब और पुरातन मान्यताओं को अपने जीवन में जगह देता है। ऐसे लोगों को सामान्यत: हम लोग “आदिवासी” कह कर पुकारते हैं। हालांकि सरकार और गैर सरकारी संस्थाएं उनके तौर-तरीकों, रहन-सहन में बदलाव करने की लगातार कोशिश करती हैं। इस लेख में हम आपको एक ऐसी जनजाति के बारे में बताने जा रहे हैं जो आज से 50 साल पहले इंसानों का शिकार करने के बाद उनकी खोपड़ी को अपने पास रखने का शौक़ रखती थीं। यह लोग किसी भी आदमी का शिकार करने के बाद उसकी खोपड़ी को अपने पास रख लेते थे, इसलिए सामान्यत: इन्हें ‘हेड हंटर्स’ कहा जाता था।

यह जनजाति पूर्वात्तर भारत के म्यांमर के दुर्गम इलाकों में निवास करती है। आज ये जनजाति थोड़ी विकसित हो चुकी है, लेकिन अब इन्हें शिकार की नहीं बल्कि अफ़ीम की लत लग चुकी है। इनका मुखिया अफ़ीम खा कर पड़ा रहता है। डेलीमेल के मुताबिक इनके क़बीले के 90 फीसदी लोग अफ़ीम का सेवन करते हैं।

skullImage Source: http://www.haaretz.com/

युद्धग्रस्त है इनका इलाका –
इस जनजाति के इलाके में नॉर्थ ईस्ट के आंतकी संगठन और सेना के बीच लगातार संघर्ष जारी रहता है। ये इलाका युद्धग्रस्त है। गांव का नाम लोंगवा है। एक समय था जब अपने व्यापार का विस्तार करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी के शासकों ने चीन के लोगों को अफ़ीम की लत लगा दी थी। चीन ने युद्ध किया और इस नशे के व्यापार को बंद करने की ठानी क्योंकि इससे चीन के युवा नकारा हो रहे थे। देश बेकारी के दौर में पहुंच गया था। फिलहाल अभी भी यहां के लोग काफी नशा करते हैं और यहां की आर्थिक स्थिति काफी खराब है।

इंसानों की खोपड़ी को सहेजने वाला किस्सा सुनने के बाद ऑस्ट्रेलियन फ़ोटोग्राफ़र राफेल कोरमन ने इस गांव का दौरा किया। साल 1960 के बाद से ही यहां हेड हंटिंग तो बंद हो चुकी है, लेकिन गांव के लोगों को नशे की हालत में देख कर कोरमन दंग रह गये थे। तस्वीरों से गांव के नौजवानों और बुजुर्गों की हालत बयां हो रही है। अंग्रेज़ों ने भारत में अफ़ीम की खेती की शुरूआत की थी। पहले 90 प्रतिशत गांवों के लोग अफ़ीम की लत के शिकार थे, लेकिन अब 30 प्रतिशत लोग ही इसकी जकड़ में हैं।

किसी भी आदमी का शिकार कर उसकी खोपड़ी अपने पास रख लेने को ये लोग परंपरा मानते हैं। साथ ही इससे इनकी कुछ धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं, ऐसा यह लोग मानते हैं पर आर्थिक तंगी और नशे की आदत के कारण ये जनजाति आज खत्म होने की कगार पर है। अच्छा होगा कि सरकार इस ओर ध्यान दे ताकि इन लोगों का विकास हो सके और ये लोग देश में अपना सक्रिय योगदान दे सकें।

shrikant vishnoi
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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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